کارتک میلے میں قوالی کی سجی بزم 

اُجین (نیا نظریہ بیورو)کارتک میلے میں کل رات میونسپل کارپوریشن کے زیر اہتمام قوالی کی بزم سجی ۔ حب الوطنی اور انسانیت کے پیغام پر مبنی قوالی سے سامعین لطف اندوز ہوئے ۔ اکولا اور اندور سے تعلق رکھنے والے قوال آفتاب قادری اور ڈاکٹر طارق فیض کی پارٹی صوفی بردرس نے اپنے پروگرام کے دوران بین الاقوامی شہرت یافتہ شعرا کی غزلیں مترنم میں پڑھ کر حاضرین کا دل جیت لیا۔ باذوق قارئین کیلئے پیش خدمت ہے کچھ کلام ،بہتی ہے یہ پریم کی گنگا رہنے دو ،کیوں کرتے ہو دیس میں دنگا رہنے دو ،لال ہرے رنگوں میں ہم کو نہ بانٹو،اپنی چھت پرایک ترنگا رہنے دو ،ہم اپنی جان کے دشمن کو ہم اپنی جان کہتے ہیں ،محبت کی اسی مٹی کو ہندستان کہتے ہیں ، ہندو مسلم ایک ہی تھالی میں کھائیں ایسا ہندوستان بنا دے یا مولا ۔صوفی بردرس نے کنور بے چین ، ڈاکٹر بشیر بدر ، ڈاکٹر راحت اندوری اور احمد رئیس نظامی کی غزلوں کو ترنم سے پیش کیا گیا جس پر سامعین نے خوب پذیرائی کی ۔ نصرت فتح علی خان نے کلام ''میرے رشک قمر'' اور ''کیا سے کیا ہو گئے دیکھتے دیکھتے ' سے محفل میں سماں باندھ دیا ۔تمام قوالوں کا استقبال میونسپل کا رپوریشن کے رابطہ عامہ افسر جناب رئیس احمد نظامی نے کیا ۔ 


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एनएच-9 पर मंगलवार रात करीब 9 बजे सड़क के दोनों तरफ लोगों की भीड़ दिखी। ये लोग घरों तक पहुंचने के लिए किसी सवारी के इंतजार में थे। कभी कोई ट्रक उनके पास आकर रुकता तो सैकड़ों की भीड़ एक साथ उस ओर भागती। जिसे उस ट्रक में जानवरों की तरह लदने का मौका मिल गया, वह खुद को खुशकिस्मत महसूस करता है। जिन्हें ट्रक में जगह नहीं मिली, उन्होंने पैदल ही हापुड़ की ओर कदम बढ़ा दिए। कई किलोमीटर तक हाइवे पर केवल लोगों की ही भीड़ देखने को मिल रही है। इन लोगों का कहना है कि रात के वक्त पुलिस का पहरा कम होता है, इसलिए वे पूरे परिवार के साथ घर के लिए निकले हैं।
पूरे देश में लॉकडाउन के बाद कामकाजी गरीब तबके ने दिल्ली छोड़ना शुरू कर दिया है। सिर पर गठरी रखकर बच्चों को गोद में लेकर महिलाएं और पुरुष रात के अंधेरे में पैदल ही दिल्ली बॉर्डर पार करने का प्रयास कर रहे हैं। किसी तरह नोएडा, गाजियाबाद और फरीदाबाद की सीमा में प्रवेश करते ही इनमें खुशी दिखती है। इनमें से कुछ रुककर किसी सवारी का इंतजार करते हैं, जबकि बाकी पैदल ही आगे बढ़ जाते हैं।
कोरोना वायरस के खौफ के बीच रात के अंधेरे में हाईवे पर इन दिनों गाड़ियों की भीड़ के बजाय सैकड़ों पैदल लोगों को भीड़ दिख रही है। पूछने पर इनका कहना है कि जब उनके पास कोई कामकाज ही नहीं है तो दिल्ली में रुकने का कोई मतलब नहीं बनता। बॉर्डर पर पुलिस की चेकिंग से बचने के लिए ये लोग रेलवे पटरियों का भी सहारा ले रहे हैं। उनका कहना है कि किसी तरह वह अपने गांव पहुंच जाएं, जिसके बाद दोबारा नए जीवन की शुरुआत का प्रयास करेंगे।
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